नहीं बनना हैडलाइन

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एक ओर छल कपट, निष्कासन , एकाकी होने का दंश दूसरी ओर घर चलाने के लिए पाई-पाई का संघर्ष , सुगंधा तन मन से टूट चुकी थी| उस पर पिता के प्यार दुलार को तरसते हज़ारों प्रश्नों से जूझते छोटे छोटे मासूम बच्चों को देख उसका कलेजा मुंह को आ जाता था| गीली लकड़ी सा दिन रात सुलगता जीवन असह्य हो चला था | क्या कमी थी उसके समर्पण में उसकी सेवा में , कि उसे यह निष्कासन मिला । उसने तो खुद को उस परिवार के लिए पूर्णतया समर्पित कर दिया था ।विवाह की पहली रात जब दिल सपनों के