कुबेर - 42

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कुबेर डॉ. हंसा दीप 42 आज आख़िरी दिन था वेगस में। जिस लिंक की तलाश थी उसके कोई आसार कहीं से कहीं तक दिखाई नहीं दे रहे थे इसीलिए आगे की चर्चा का तो कोई सवाल ही नहीं था। सम्पर्क सूत्र पाना या नए सम्पर्क बनाना इतना आसान नहीं होता। हालांकि कल सुबह निकलना था परन्तु मन हो रहा था कि अभी से एयरपोर्ट चले जाएँ। कई बार ये लोग जल्दी वाली फ्लाइट में जगह हो तो एडजस्ट कर लेते हैं – “अगर ऐसा हो जाए तो भाईजी, आज ही घर निकल जाते हैं।” डीपी को अपने इस बेतुके इंतज़ार