कुछ दूर तलक

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कुछ दूर तलक आज यूं ही निकल पड़ी थीथोड़ी देर बाद में रुकीपिंछे मुड़कर देखा तो,वहां कोई नहीं था।कोई भी नहीं।कहा चले गए वो सब लोग?जिन्हे में जानती थीयहां तो कोई भी नहीं है!में थोड़ी देर और रुकी रहीशायद कोई पींछे आ रहा हो।फिर में क्या करती थोड़ी और आगे बढ़ चलीरुकना, ठहरना, किसिकी राह देखना ये सब मुझे कभी गंवारा नहीं थाआज भी नहीं है। अकेली ही चल पड़ी हूं अनजान राहो परपता है इसमें मजे की बात क्या है?में खुश हूं!एक नन्ही सी तितली और कुछ जंगली फूल ये मुझे घुरे जा रहे हैमानो उन्हें यकीन नहीं हो रहा आज भी कोई