किसी ने नहीं सुना - 18

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किसी ने नहीं सुना -प्रदीप श्रीवास्तव भाग 18 मैं ऑफ़िस की ऐसी ही तमाम घटनाओं में डूबता-उतराता सारी रात जागता रहा। और नीला में लंबे समय बाद एकदम से उभर आई हनक और उसकी शान भी देखता रहा। इस लंबी बात के बाद उसने मानो बरसों से ढो रहे किसी बोझ को उतार फेंका था। विजयी भाव उसके चेहरे पर तारी था। अपनी विजय का उसने जश्न भी अपनी तरह खूब मनाया था। बच्चों के न होने का भरपूर फायदा उठा लेने में कोई कोर कसर उसने नहीं छोड़ी थी। बरस भर की अपनी प्यास उसने जीभर के बुझाई,। बेसुद्ध