सदा सुहागिन रहो !

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बेटी की शादी के बाद कुलदेवी की पूजा करवाने संजना भारत आई थी । अपने लोगों से चारों ओर खुद को घिरा पाकर उसका मन लाल ऊँन के गोले-सा लुढ़का जा रहा था । चाबियों का गुच्छा निकाल उसने जल्दी से दरवाज़ा खोला तो देखा चारों ओर मकड़ियों के जाले लटक रहे थे । सबसे पहले संजना ने खिड़कियों के पर्दे खोले और ड्राइंगरूम में लगी फैमिली-फ़ोटोग्राफ़ साफ़ करने के लिए बेटी से कहा। सुहानी ने इधर-उधर डस्टर ढूंढा जब नहीं मिला तो वह रूमाल से ही उसे पोंछने लगी ।”सम्हाल कर सुहानी, फ्रेम का एक कोना टूटा है ।