हम भी अधूरे..तुम भी कुछ आधे

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तेज कदम बढ़ाते हुए विशाखा सूनी सड़क पर चली जा रही थी। सड़क किनारे लगे कतारबद्ध अशोक के वृक्ष भी असक्षम थे उसके मन की वेदना को मिटाने में ।सड़क के उस ओर मोड़ पर बने उस नर्सिंग होम के एक कमरे में बैड पर उसके दिल का टुकड़ा अर्धमूर्छित हालत में पड़ा हुआ था। जिसके पास फिलहाल अपनों के नाम पर कोई भी न था ।विशाखा को आज शाम ही किसी भी हालत में ऑपरेशन की फीस जमा करानी थी । तब कहीं जाकर उसके बेटे का ऑपरेशन कर पाएँगे डॉक्टर ।इसी आवश्यक कार्य के लिए वह सड़कों पर