दुःख या अवसाद

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कुछ लोग इतने दुःखी होते हैं, कि जरा सी बातें ही इनकी आंखों को भर देती हैं। दुःख इस हद तक इनमें शामिल होता है कि ये सुख और दुःख के भेद को समझना भूल चुके होते हैं। इन्हें पता ही नहीं चलता कब ये मुस्कुराते हुए रोने लगते हैं, और कब रोते-रोते मुस्कुरा जाते हैं।मैंने अधिकांश लोगों को कहते सुना है.. "ख़ुश रहा करो"..ये जो "ख़ुश रहा करो" होता है ना।। ये खुश रहना किसी दुःखी इंसान के लिए एक सपने जैसा है।"ज़्यादा सोचो मत","आदत हो जाएगी","वक़्त बहुत बड़ा मरहम है","तुम ठीक रहोगे, तो सब ठीक रहेंगे""बात-बात में रोया