दिन ढलने के कगार पर थी और रात चढने की खुमार पर थी हवा गर्म से नर्म हो रही थी मौसम भी धीरे-धीरे लजीज हो रही थी टहलने का मन हुआ तो निकल पड़े लुफ्त उठाने मौसम का ।। घर से कदम बाहर निकले हीं थे की मेरे एक अजीज मित्र का फोन आया और पुराने अड्डे पे आने को कहा, वह वही पुराना अड्डा है जहाँ एक कप चाय में घंटो बीत जाया करती थी न वक्त का पता लगता था और न कोई दर्द का पता लगता था जहाँ बैठकर हमसभी शहर के शहंशाह हो जाया करते थे न