लॉकडाउन में मन के खुले किवाड़

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कितने दिन हो गए हैं घर से बाहर निकले । रोज़ सुबह घर का काम ,नाश्ता खाना ,साफ सफाई ,बरतन धोना ...बाई भी नहीं ,कोरोना जैसी महामारी के वजह से किसी भी बाहरी व्यक्ति को आने की इजाज़त भी नहीं ।सारी दुनियां घर में क़ैद ...अगर ये नहीं होता तो अपूर्वा बच्चों के साथ समान पैक कर मायके चली गयी होती । पूरे साल भर इसी आस में बीतते कि कब मई आये और वो माँ के घर पहुंचे पर इस बार तो ऐसा हो ही नहीं सकता ...। अपूर्वा ने मन को समझा लिया था कि आखिर वही अकेली तो