श्री मद्भागवतगीता महात्म्य सहित (अध्याय-३)

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जय श्रीकृष्ण बंधु! आज फिर एकबार आपसभी बंधुजनों के सम्मुख आप सभी स्वजनों का अन्तःकरण से प्रेम पाने के लिए उपस्थित हुआ हूं । जैसे आप सभी बंधुजन मेरे सभी लेखों को अपने प्रेम भरे पालो से सिंचित करके अपना कीमती विचारो से मुझे कृतार्थ करते है वैसे ही लेख को पढ़ के मुझे अनुग्रहित करे तथा जैसे मैं श्रीगीता जी को पढ़ के लिख के सुनके कृतार्थ और भगवान श्रीकृष्ण का कृपापात्र हुआ हूं उसोतरः आप भी होव और आपकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो यही ईश्वर से प्राथना है।जय श्रीकृष्ण! ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~