अक्सर रात की तन्हाई और आँखों से ओझल नींद.. हमें वो सारी बातें..सारे किस्से याद करा जाती है जिनको हम दिनभर काम में बिज़ी रहकर नज़रअंदाज़ करने की कोशिश करते है...पर ये रास्तों के लंबे सफ़र कहाँ इजाज़त देते है की हम भूलने की मजाल कर पाए... ट्रैन की खिड़की के बाहर पसरा घनघोर अंधेरा..अंदर आती ठंडी-ठंडी हवा..हवा के झोंकों से कान के पीछे दबाई लटों का बार-बार गालों तक आना..और फिर से उन्हें कान के पीछे दबाने की माया की हर बार की तरह नाकाम कोशिश..