महामाया - 6

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महामाया सुनील चतुर्वेदी अध्याय – छह अखिल कुछ सोचता हुआ रिसेप्शन पर पहुंचा । वहाँ दिव्यानंद जी आनंदगिरी से किसी बात पर उलझ रहे थे। आनंदगिरी जोर-जोर से बोलता हुआ पीछे पलटा और अखिल को देखा-अनदेखा करते हुए गुस्से में वहाँ से चला गया। दिव्यानंद जी भी रिसेप्शन की कुर्सी पर बैठे गुस्से में बड़बड़ा रहे थे। ‘‘अरे ऐसे बहुत साधु देखे। भगवा चोला पहना और हो गये मनमुखी साधु। अरे साधु समाज में ऐसे मनमुखी साधुओं की कोई बखत थोड़ी होती है। अभी कोई इस आनंद गिरी से पूछेगा कि तेरा गुरू कौन.......? कौन अखाड़ा.......? तो भूल जाऐगा सारी