कागा सब तन खाइयो

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बेटे की शादी के बाद अपने-अपने नाती-पोते के जन्मोत्सव पर उषा और मंजुला फिर से मिल रही थीं ।अचानक आई महामारी ने दोनों को एक जगह कैद कर दिया था। लाख न चाहने पर समधिन जी जैसे भारी भरकम संबोधन सहजता से बहन जी में बदल चुके थे ।एक दिन मंजुला बालकनी की रेलिंग पर कोहनी टिकाये अपनी पसंद का गीत गुनगुना रही थी । “कागा सब तन खाइयो ,मेरा चुन-चुन खइयो मास, दो नैना मत खाइयो मोहे पिया मिलन की आस ।" इतने में उषा भी चाय के दो प्यालों के साथ वहाँ प्रकट हो गई और चुटकी लेते हुए