स्वप्न हो गये बचपन के दिन भी... (16)

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पर्वतीय प्रदेश में ठहरी साँसों का हसीन सफर... (क) तब हिन्दुजा बंधुओं की सेवा में था। सन १९७९ के अंत में राजकमल प्रकाशन, दिल्ली के सम्पादकीय विभाग की नौकरी छोड़कर मैं ज्वालापुर (हरद्वार) में अशोका प्लाईवुड ट्रेडिंग कंपनी में एडमिनिस्ट्रेटर के पद पर बहाल हुआ था। पांच-छह महीने ही हुए थे कि मुंबई के प्रधान कार्यालय से मुझे एक हरकुलियन टास्क मिला। और वह आदेश भी श्रीचंद पी. हिंदुजाजी का था, जिसकी अवमानना नहीं की जा सकती थी।बात दरअसल यह थी कि इंग्लैंड में हिंदुजाजी का एक गढ़वाली पाकशास्त्री था। वह कई वर्षों से विदेश में, उन्हीं की सेवा में, तत्पर