किसी ने नहीं सुना -प्रदीप श्रीवास्तव भाग 13 कई बार मन संजना पर भी गया। फ़ोन करूं या न करूं मैंने इस असमंजस में रात में बारह बजे तक अपने को रोके रखा। फिर उसके बाद जब कॉल की तो उसने फ़ोन काट दिया। मैं गुस्से से तिलमिला उठा था। पर नैंशी के सामने जाहिर नहीं होने दिया। फिर नैंशी के मायाजाल में ऐसा डूबा था कि यह सब नेपथ्य में चले गए थे। मगर अब नैंशी नेपथ्य में थी। नीला हावी थी। एक बार भी फा़ेन न आने से मैं हैरत में था। सोचने लगा कि संजना से संबंध