भूतिया बगीचा - SJT

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आज चार साल बाद आया हूं यहां , कुछ भी नहीं बदला सब कुछ पहले जैसे ही है , आज भी सूरज की रोशनी अन्दर नहीं आ पाती है ठीक से , इतना घना बग़ीचा है ।फिर भी पत्तों के बीच से छनकर के सूरज की किरणें जहां जहां पड़ती हैं , ऐसा लगता है जैसे कोई मड़ी चमक रही हो ,हवा का हल्का सा झोका जब पेड़ से टकराता था,और उससे होनी वाली आवाज़ जो होती थी , बहुत ही डरावनी होती थी ।पर ये सच है की वहां कोई अकेला नहीं जाना चाहता था , "आम का बगीचा" बहुत