गांव का आख़री दिन बहुत अजीब सा अकेलापन में शामिल कर लेता है। रात में ही दिमाग से घर में बिताया समय खत्म हो चुका होता है। अगली सुबह लगता हैं, घर के बाहर शहर मेरा इंतजार कर रहा । आज सुबह अचानक नींद से उठकर समय देखा 8 बज चुके थे। जल्दी से तैयार होकर आंगन पर पंहुचा। सुबह एकदम खाली लग रही थी। यात्रा से वापिस लौट जाने वाले दिन की सुबह हमेशा बदली हुई रहती है। जब दो दिन पहले गांव पंहुचा था सुरज की रोशनी में अलग चमक थी। हवां मन को खुश कर रही थी।