अनजाने लक्ष्य की यात्रा पे - 17

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भाग-17 प्रेम का अनावरण ऊपर आते ही इन लोगों ने मुझे घेरे में ले लिया। और उस गुप्तचर ने तो बढ़कर मुझे जकड़ लिया और एक खंजर मेरे गले पर टिका दिया। उस खंजर की तेज़ धार मेरी श्वांसनलिका पर दबाव बनाये हुये थी। उस तेज़ धार को मैं महसूस कर रहा था। अब मुझे हिलने-डुलने में क्या बोलने में भी डर लग रहा था कि बोलने से गले की जो मासपेशियां हिलीं तो उस खंजर की तेज़ धार से कट जायेंगी। “तुम इस एकांत और अंधेरे का लाभ उठाकर किसे संदेश भेज रहे थे?” मत्स्य-मानवों का वह सेनापति