महामाया - 3

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महामाया सुनील चतुर्वेदी अध्याय – तीन अखिल ने खिड़की के सामने लगा परदा हटाया और खिड़की खोल दी। ताजी ठंडी हवा का एक झोंका कमरे में प्रवेश कर गया। हवा के झोंके के साथ ही खिड़की के रास्ते धूप का एक टुकड़ा भी कमरे में उतरा और लंबाई में फैल गया। अखिल ने महसूस किया कि सुबह के नौ बज चुके हैं लेकिन धूप में अभी भी गर्माहट नहीं हैं हल्का सा कुनकुनापन जरूर है। अखिल दोनों हाथ बांधे खिड़की के सामने खड़ा हो गया। खिड़की गंगा घाट की तरफ खुलती थी। खिड़की से बाहर का दृश्य किसी सुंदर लैंडस्केप