जो घर फूंके अपना - 27 - गरम ओवरकोट

  • 9.5k
  • 2.2k

जो घर फूंके अपना 27 गरम ओवरकोट अगले दिन हम दोनों गुप्ता के चाचाजी के घर गए. रास्ते भर गुप्ता राजकपूर की फिल्मों के गाने गुनगुनाता रहा. हालांकि उसके गले में स्वर कोई विशेष नहीं था पर उसके गाने का फायदा ये था कि मोटरबाइक का हॉर्न नहीं बजाना पड रहा था. चाचाजी के घर के ड्राइंग रूम में घुसे तो दीवान के ऊपर पालथी लगाए, सद्यःस्नात, माथे पर लाल तिलक लगाए, कम्बल लपेटे बैठे सज्जन प्रोफेस्सर विद्याविनाश जी को छोड़कर अन्य कोई हो ही नहीं सकते थे. हम दोनों ने बढ़कर पैर छुए, आशीर्वाद मिला. बात शुरू करने के