रँगरेज़ा के रंगों की थाप

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घर में जब से स्वच्छंद विचार धारा वाली बहू ब्याहकर आई थी तब से घर की रंगत ऐसी बदली कि अपने भी अपनों को पहचानने से इनकार करने लगे थे | हर छोटी-बड़ी वस्तु में स्वयं को नया बनाने की होड़ पैदा हो गयी थी | पुरखों के हाथ की चीजों को या तो एंटीक बना कर घर के कोने में सजा दिया गया था या स्टोर-रूम के अँधेरे को सौंप दिया गया था | सदरद्वार के पाँवदान से लेकर शयनकक्ष के दीये तक सभी अपनी नई मालकिन की ख़िदमत में लगकर मौज मना रहे थे। ये देखते हुए सास