एक पिता की व्यथा

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इस लोकडाउन मे बात एक पिता की भी होनी ज़रूरी है जो पिता रात दिन काम करता था आज वो घर पे बिना काम के बेठा हे फिर भी मुस्कुरा रहा हे जिस पिता को आराम की आदात नहीं आज वो चेहरे से गम छूपा रहा है जो पिता कभी हारा नहीं थका नहीं आज वो बच्चो के साथ खिलखिला रहा है वक्त का वो भी धौर उसने आज देखा है , ओर मन ही मन मे गुम सुम सा वो रहता है फिर भी पिता सबका सहारा है पर कितना ही बुरा समय क्यो ना आ जाये, हर कठिनाई से वो लड़ जाता हे,