तैय्यब अली प्यार का दुश्मन

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तैय्यब अली प्यार का दुश्मन दिन का मुँह धुंआं धुआं हो रहा था। सूरज अपने कंधे पर दिन का लहू-लुहान जिस्म लिए चलता हुआ। लौटे हुए पंछी हाय-तौबा मचाए पेड़ों की शाखाओं पर लुढ़क-पुढ़क रहे थे। कस्बाई वातावरण थेाड़ा नम, सोंधा और मादक-सा हो आया था। सठियायी बूढ़ियां अपने-अपने घरों के सामने छोट-छोटे समूह बनाए बैठी थीं। बावर्चीखानों से दाल-चावल की अनूठी वाष्प और सब्जियों का छौंक उठ-उठ के आसमान में फैल रहा था। झुटपुटा थोड़ा और बढ़ आया। शाम थेाड़ी और गाढ़ी हुई। कि तभी गली के बिल्कुल पीछे वाले घर से एक खरखराता सा शोर उठा। धड़ाधड दरवाजे