कुन्ती के वाक्य सुमित्रा जी के दिल पर हथौड़े से पड़ रहे थे. जब वे ब्याह के आईं थीं, तब उनकी लम्बाई-चौड़ाई पर भी कई दबी ज़ुबानों से उन्होंने भी ’पहलवान’ जैसा कुछ सुना था. उन्हें कैसा लगा था, ठीक वैसा ही वे अब जानकी के लिये महसूस कर रही थीं. कुन्ती को लोटता छोड़ , वे रमा के हाथ से थाली ले के आगे बढ़ीं. थकान से भरी ज़रा सी बालिका-वधु अब अपनी सास का प्रलाप सुन रही थी वो भी पिता को दी जाने वाली गालियों सहित. घूंघट के भीतर उसके आंसू बह रहे होंगे, सुमित्रा जी जानती थीं. उन्होंने जल्दी से दूल्हा-दुल्हन की आरती उतार, परछन किया और भीतर ले आईं, ये जानते