स्वप्न हो गये बचपन के दिन भी... (10)

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स्वप्न हो गये बचपन के दिन भी (10) वह सम्मोहिनी बेबी ऑस्टिन--बी.आर.ए.-85 ...पटना में रहते हुए पिताजी का आवासीय पता रह-रहकर बदल जाता था। वह ज़माना भी ऐसा न था कि एक एस.एम.एस. लिखकर तमाम दोस्तों को बता दिया जाता अपना बदला हुआ ठिकाना! पिताजी के मित्र-बन्धु इतने उदार और हितू थे कि खोज-ढूँढ़कर उनके पास पहुँच ही जाते और उलाहना देते--"क्या पता था, हम ढूँढ़ते रह जाएँगे, और तुम मिलोगे इक बदले हुए ठिकाने पर!" कई बार तो एक साल में तीन-चार ठिकाने। मुक्त-मन के यायावर प्राणी थे पिताजी भी। मन जहाँ नहीं रमा, चिल्ल-पों हुई, शोर-शराबा मिला, पिताजी ने