आँसू तेरे प्रेम के (लघु कथा)

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आंसू तेरे प्रेम के एक स्मृति जिसे मन कभी भूला ना सका। तीस बर्षों बाद साहित्य की पत्रिका पढते हुए अनायास एक अभिनन्दन पत्र पर नजरें पड़ी। पढ़ते पढ़ते रोम रोम रोने लग गया। बेटे ने पूछा क्या हुआ माँ!, क्या कहती उसे, जो कभी खुद को नहीं कह पाई। दूबारा पूछने पर इतना कहा, ये बहुत अच्छे कवि थे, मेरी इच्छा थी मैं ऐसे विद्वान से मिलूँ, पर अब वो नहीं रहे। कहते हुए आंसू टपक पड़े। ममता के अपार स्नेह में पले मेरे पुत्र ने विश्वास से कहा, मांँ! आप इनसे मिल नहीं पाई दुख