अब तक आपने पढ़ा... सहसा प्रकाश की एक किरण नज़र आई। एक लपलपाती हुई अग्नि... फिर उसे धारण किये हुये एक हाथ। एक परछाई ऊपर छत की ओर बढ़ी आरही थी जिसने एक मशाल थाम रखी थी फिर कुछ और मशालें फिर कुछ और लोग। अब मशालों की लपलपाती रौशनी में उन्हें मैं पहचान सकता था। इसमें कुछ सैनिक मत्स्मानव थे, और गेरिक था मेरा मित्र, हमारे जलयान के अभियान सहायक थे और सेनापति... और था उस संकट का प्रमुख कर्ताधर्ता, सेनापति का वह गुप्तचर... मशाल थामें सबसे आगे... अनजाने लक्ष्य की राह पे भाग-16 कथा