प्रवाह - छुआइन

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-:छुआइन:-"एगो रहे बुढ़िया, एगो ओकर बेटा अउर बेटा के मेहरारू। गांव के बहिरे ओखनी के एगो झोपड़ी बना के रहत रहले सन। मजूरी कऽ के दूनों सांझि के खाए के .….." दादी की कहानियां कुछ इसी तरह शुरू होती थीं लेकिन अंत हमेशा कुछ सीख दे कर ही होता था। इस कहानी का सार यह था कि बेटा अधिक कमाने की इच्छा से परदेस चला जाता है। घर में बस दो महिलाएं हैं। बहू घर का काम देखती है और सास बाहर के कुछ घरों