ये चकलेवालियां, ये चकलेबाज नीला प्रसाद (2) दोपहर लंच टाइम था। खाना खाकर सब अपनी -अपनी टोली में बैठे गपिया रहे थे। इसी बहाने काम की एकाध बात भी हो जा रही थी कि किसने, कौन -सी फाइल दबा रखी है और किसके पास से कौन -सी फाइल तुरंत नहीं निकलने से कितनी परेशानी होगी– और फिर यह निराशावाद कि हमारा ऑफिस ही बुरा है, बाकी सबों का कितना अच्छा! यहां तो बड़ी पॉलिटिक्स है जी!!– सब एकमत थे। मैं, जो चार - पांच ऑफिसों में काम कर चुकी थी, इस बात से सहमत नहीं थी, पर मेरी सुनने को