जो घर फूंके अपना 20 बाप रे बाप ! लखनऊ में नाका हिंडोला थाने के थानेदार साहब मेरे लिए नितांत अपिरिचित थे और अपिरिचितों से गाली सुनने में कैसी शर्म. समस्या तो तब उठ खड़ी होती है जब अपनों को कुछ ग़लत बोलने के बाद उनसे बेभाव की पड़े. जैसी कि मेरे दोस्त तरलोक सिंह को पडी थी अपने ही पिताजी से. तरलोक भी मेरी स्क्वाड्रन में फ्लाईट लेफ्टिनेंट था. उसके पिताजी ने कलकत्ते में तीस साल पहले टैक्सी चलाना शुरू किया था. धीरे धीरे अपनी मेहनत के बल पर इन तीस सालों में वे तीस टैक्सियों के मालिक बन