काले कोस, अंधेरी रातें - 2

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काले कोस, अंधेरी रातें (2) मैं जानती तो हूँ सबकुछ, फिर भी न जाने क्यों अवाक हो उठती हूँ ...जैसे पहली बार सुन रही हूँ यह सब कुछ ...गडमड से कई दृष्ट आँखों में कौंधते हैं – एक पेपरवेट उड़ता हुआ आ रहा है पीछे,,,, शंपा बेटी को कब सुलाओगी? सुलाओ जल्दी ...क्या कर रही हो कभी भी तो फुर्सत मे रहा करो ... और सच तो यह की मैं सचमुच फुर्सत कि उस घड़ी को टालती रहती हूँ, डरती रहती हूँ उसके आने से ... यह कपड़े से कैसी बास आ रही है...हल्दी और तेल की.... यह अपने हाथ-पैर