वह चेहरा (1) मध्य दिसम्बर का एक दिन. सुबह की खिली-खिली धूप और लॉन में पड़ी बेंचें. बेंचों पर बैठे कई चेहरे..... धूप में नहाये चेहरे.... धूप सेकते चेहरे. खिड़की का पर्दा उन्होंने थोड़ा-सा खिसका दिया था,जिससे लॉन का दृश्य स्पष्ट दिख रहा था. उनकी नजर एक चेहरे पर टिक गयी और वह गौर से उसे देखते रहे. चेहरे पर उम्र की लकीरें स्पष्ट थीं. उन्होंने कुर्सी एक ओर खिसकाई और खिड़की पर जा खड़े हुए.... निर्निमेष उस चेहरे को देखते हुए. 'वही हैं......लेकिन यहां क्यों ? ' मस्तिष्क में तंरगें दौड़ने लगीं. कुछ क्षण खिड़की पर खड़े रहकर वह