जो घर फूंके अपना 17 क्या क्या न सहे हमने सितम आपकी खातिर ! इलाहाबाद जाने की तय्यारी तो कुछ विशेष करनी नहीं थी. लडकी के पिताजी को फोन मंगलवार को किया था. जाने में चार दिन बाकी थे. इन चार दिनों का सदुपयोग मैंने शोभा की तस्वीर देर-देर तक निहार कर किया. शोभा की तस्वीर के साथ की जो चार अन्य तस्वीरें बूमरैंगी फिंकाई और बन्दर-नुचवाई से बच गयी थीं यदि पास रही होतीं तो रोज़ उनकी दूकान सजा कर बैठता और सोचता कि किसी के होंठ रसीले लगते हैं,किसी की आँखें नशीली हैं पर मुझे पसंद आने वाली