जीनी का रहस्यमय जन्म - 6 - अंतिम खंड

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अंतिम खंडएक बूढ़ा सन्यासी अपने शिष्य को कुछ महत्वपूर्ण उपदेश देते हुए बोल रहा होता हैँ। " पाप का भागी सदैव दंड का पात्र बनता हैँ। चाहे लोक हो या परलोक एक दिन निश्चित उसको दंड भोगना पड़ेगा। शिष्य " पाप और पुण्य केवल किताबों तक ही सिमित हैँ। और मृत्यु पश्चात् का तो पता नहीं पर इस संसार मे केवल निर्बल ही दुख भोगता हैँ। बलवान तो सदैव सुखी रहता है। और इतना बोल उस पैंतीस वर्षीय शिष्य ने अपनी जादुई छड़ी से उस सन्यासी के शरीर के दो टुकड़े कर दिए और उसको मौत की नींद सुला दिया। मगर