कृष्णा - भाग-१

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"अरे बहू रोटी ना बनी के अभी तक! अंधेरा घिरने को आया! तुझे पता है ना! मुझे सूरज छिपते ही खाने की आदत है!" "अम्मा वो उपले गीले थे ना इसलिए आंच जल ही ना रही थी। मैं तो इतनी देर से लगी हूं चूल्हा जलाने में!" "रहने दे, ज्यादा बात मत बना! देख रही हूं जब से पेट पड़ा है, ज्यादा ही हाथ पैर ढीले हो गए हैं तेरे। अरे हमने भी तो छे छे बच्चे जने हैं। हमने तो कभी यों हाथ पैर ना छोड़ें और तेरा ये आलस देखकर तो लगता है कि इस बार भी छोरी