मैं वही हूँ! - 3

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मैं वही हूँ! (3) बिस्तर में देर तक करवटें बदलने के बाद मैं उठ कर बाहर आ गया था। उस समय रात के तीन बजे थे। धूसर नील आकाश में पश्चिम की ओर झुके चाँद के पास का सितारा बहुत उजला दिख रहा था। उजला और बड़ा। जैसे किसी भी क्षण टूट पड़ेगा! उसी ओर देखते हुये मैं आगे बढ़ रहा था जब मुझे सुरंग के पास कुछ अस्पष्ट-सी आवाजें सुनाई पड़ी थी। खजाने के संधान में निकले कोई चोर-उचक्के ना हो! तम्बू से टॉर्च ले कर मैं दबे पाँव सुरंग के पास चला गया था। मेरे पास पहुँचते ही