हास्य

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(भाषागत अशुद्धियां कालांतर में रूढ़ हो कर स्थान-विशेष की बोली में घुल-मिल जाती हैं। फिर ये वहां की पहचान बन जाती हैं और कभी कभी हास्य भी उत्पन्न करती हैं। इसी विषय पर एक रचना प्रस्तुत है।) सन्ना भिउ इस्टूडियो मैं अपना परीक्षा केंद्र खोजता हुआ पटना के एक मुहल्ले के चिलरेन पार्क तक तो पँहुच गया पर अब अगले चिन्हित स्थान का पता कर पाना मुश्किल हो रहा था इस लिए सामने से आते राहगीर का सहारा लिया। "भाई साहब, ये सन्ना भिऊ इस्टूडियो कहाँ है, बता सकते हैं"।"कौची?"इस अजीब से