मे और मेरे अह्सास - 8

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मे और मेरे अह्सास (8) जब उसकी आवज सुनता हूं lबेहोशी के आलम से लौट आता हूं llजब उसकी सांसो की महक आती है lउसे महसूस करने दौड़ा जाता हूं llवो क्या शै खुदा ने बनाई है lदेखकर उसे दिलों दिमाग लुटाता हूं ll ******* सुर कुदरत के है निराले सुन जरा lखेल कुदरत के है निराले देख जरा ll ******* खुदा भी आज रूठ कर बैठा है lमंदिर - मस्जिद बंध कर बैठा है llइंसानो के बीच तो दूरी रखनी है lखुदा भी दूर जाकर के बैठा है ll ******* कितना आसाँ है कहना ये पल गूजर जायेगा lकितना