रंगून क्रीपर और अप्रैल की एक उदास रात - 4 - अंतिम भाग

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रंगून क्रीपर और अप्रैल की एक उदास रात (कहानी : पंकज सुबीर) (4) ‘‘आंटी.. आपका मन ठीक नहीं है तो अब रहने दीजिए, वैसे भी रात बहुत हो गई है।’’ कहते हुए पल्लवी ने रिकॉर्डर बंद कर दिया। ‘‘हाँ... अरे सच में रात तो बहुत हो गई है, बात करते हुए पता ही नहीं चला.... लेकिन अब बहुत थोड़ी ही बची है कहानी, पूरी कर ही लेते हैं। डॉक्टरी पेशे में कुछ भरोसा नहीं है कि कब इमरजेंसी आ जाए, और उस पर गायनोकोलॉजिस्ट के लिए तो और भी मुश्किल है समय निकालना। आज समय निकला है तो कहानी पूरी