नाम में क्या रखा है (3) “काश ! ये हमारे जीवन का सच होता निशि.यूँ लगा जैसे किसी ने हमारी कहानी लिख दी हो. तुम्हारी अस्वीकार्यता और मेरी चाहत के बीच एक पुल का निर्माण किया हो. निशि जवाब जरूर देना. सच मैं आगे बढ़ना चाहता हूँ, मेरा एकांत मुझे छीज रहा है, रेशा रेशा एक सवाल बन गुजर रहा है. मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा मैं क्या करूँ, कहाँ जाऊँ. मेरा हाथ थाम लो निशि कहीं मैं घुट घुट कर ही न मर जाऊँ. बेचैनियों ने जीना मुहाल कर दिया है कभी कभी मन होता है कुछ खाकर