भदूकड़ा - 24

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एक मिनट को दादा कुछ समझ ही नहीं पाये कि कुन्ती कह क्या रही है! सुमित्रा और ऐसी हरक़त! न कभी नहीं. ’अरे तुम्हें ग़लतफ़हमी हुई होगी कुन्ती. सुमित्रा ऐसा नहीं कर सकती.’ ’वही तो....... ये देवी जी ऐसी सच की मूर्ति बनी बैठी हैं कि इनके ग़लत काम को भी कोई मानता नहीं. रुकिये मैं दिखाती हूं. अच्छा चलिये आप ही.’ भैया को लगभग घसीटते हुए कुन्ती पालने तक ले आई और बिस्तर उठा के कपड़ा दिखाया. भैया सन्न! ’अब हुआ भरोसा?’ कुन्ती कुटिलता से मुस्कुरा रही थी. भैया कुछ नहीं बोले. अपनी कुरसी पर वापस बैठते हुए बस