बाबुल मोरा... - 3 - अंतिम भाग

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बाबुल मोरा.... ज़किया ज़ुबैरी (3) लिसा का ग़ुस्सा बढ़ता जा रहा था; जैसे जैसे उसे अहसास हो रहा था अपना कुछ खो जाने का ; लुट जाने का...अपने ही घर में आंखों के सामने डाका पड़ जाने का और अपनी मजबूरी का. उसके डैडी ने उसे कुछ संस्कार दिये थे। रोमन केथॉलिक होने के संस्कार। वह अपने जीज़स की बताई बातों पर चलना चाहती थी क्योंकि उसके डैडी को वही बातें पसन्द थी। नैंसी हमेशा मज़हब के ख़िलाफ़ बात करती... मज़ाक उड़ाती मज़हब का। उसके अनुसार मज़हब के अनुसार चलने वाले दक़ियानूसी होते हैं... पिछड़े हुए लोग। शुक्र मनाती कि