आर के का दिल काम नहीं लगाता इलीना के जाने के बाद थोड़ा उसे जानने को बेताब होए जा रहा था,पर कंट्रोल नाम की भी कोई चीज़ होती है, जो वोह लेकर बैठा था था क्या भाई बैठना ही पड़ता हे वर्ना धंधे पे ताला लगाना पड़ता जनाब, पर बन्दे को अंदर से आवाज मुहोबत करने वाली आ रही थी क्या करे बेचारा, मुहोबत भी तो जरूरी है, कहीं पर भी अह्सास थोड़े अंगड़ाई लेने लगते हैं और जहा लेते हैं वहा दिल की ही सुनी जाती हैं. दिमाग तो भजिया बन जाता है, साला खाया भी नहीं जाता