आओ थेरियों - 5 - अंतिम भाग

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आओ थेरियों प्रदीप श्रीवास्तव भाग 5 मैं यह जानती समझती हूं कि हम तुम छप्पर में रहने वाली औरतों के लिए यह संभव नहीं है। हम सदियों से इतने शोषित हुए हैं कि मुंह खोलने की बात छोड़ो ऐसी बातें सोचने की भी क्षमता नहीं रह गई है। यह घटना ना होती, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, सोशल मीडिया जरा सी बात को भी देश ही नहीं दुनिया में हर तरफ पहुंचा देने की क्षमता ना रखतीं तो हम आज भी यह सोच-समझ नहीं सकते थे। मनू मैंने बहुत सोच-समझ कर एक अचूक प्लान बनाया है, और उसके हिसाब से ही आगे बढ़