कशिश सीमा असीम (30) बेटा मैं क्या करूँगा, इतने सरे सेब का ? आप खा लीजियेगा ! वो मासूमियत से बोला ! हम्म ! राघव उसकी बात पर मुस्कुराये बिना न रह सके ! यह होती है देने की चाह ! चलो भाई, अब चलते हैं ! आज मेरे पास ऐसा कुछ भी नहीं था, जो उन सेबों का मोल उस बच्चे को लौटा पाता, वाकई प्रेम का कोई भी मोल नहीं है, यह ख़रीदा नहीं जा सकता, न ही इसे माँगा जा सकता है अगर यह मिलना होता है तो कहीं न कहीं से किसी बहाने से मिल ही