कुबेर डॉ. हंसा दीप 11 अभी तक इतने सालों बाद भी जो दिल के क़रीब था वह क़रीब ही रहा, कभी दूर हुआ ही नहीं था। वही महक रौशनी की तरह परावर्तित होकर बार-बार आती थी उसके समीप। उसके कानों में फुसफुसा कर चली जाती थी। कह जाती थी अनकही बातें और सुना जाती थी माँ के स्नेहिल आँचल की कहानी। उसी माँ का लाड़ला धन्नू अब कई बच्चों का भाई डीपी बन चुका था। रविवार की सभा में आने वाले कई लोग सर डीपी कहते। एक जाने-माने जौहरी, दादा के द्वारा तराशा गया डीपी एक ऐसा हीरा बन चुका