निश्छल आत्मा की प्रेम-पिपासा... - 39

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'स्मृतियों को समर्पित थे वे अश्रु-कण'…१६ नवम्बर १९९५। संध्या रात्रि का परिधान पहनने लगी थी। पिताजी कई घण्टों से मौन थे और खुली आँखों से कमरे से आते-जाते, बैठे-बोलते हमलोगों को चुपचाप देख रहे थे--निश्चेष्ट! शारीरिक यंत्रणाओं और अक्षमताओं ने उन्हें अवश कर दिया था। रात के आठ बजे थे, तभी कथा-सम्राट प्रेमचंदजी के कनिष्ठ सुपुत्र अमृत रायजी सपत्नीक पधारे। वे किसी प्रयोजन से पटना आये थे और मित्रों से यह जानकार कि पिताजी सांघातिक रूप से बीमार हैं, उन्हें देखने चले आये थे। अमृतजी पिताजी के सिरहाने कुर्सी पर बैठे और उनकी गृहलक्ष्मी सुधाजी (सुभद्रा कुमारी चौहान की सुपुत्री)