निश्छल आत्मा की प्रेम-पिपासा... - 31

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जो तुम आ जाते एक बार !…प्राध्यापक महोदय के बुज़ुर्ग मित्र का नाम तो अब स्मृति से पूरी तरह मिट गया है, लेकिन पाठ और उल्लेख की सुविधा के लिए मान लीजिये कि उनका नाम शर्माजी था। मैंने दफ्तर से दोपहर में शर्माजी को फोन किया। मेरा फ़ोन पाकर वह प्रसन्न हो उठे। खिलकर बोले--'आनंदजी! मैं जानता था, आप मेरी मदद जरूर करेंगे ?' मेरे फोन को ही उन्होंने मेरी स्वीकृति मान लिया था और बहुमुख हो उठे थे, कहने लगे--'आप जब कहें, जहाँ कहें, मैं वहीं आ जाता हूँ। आप चाहें तो मैं अपने निवास पर ही आपको अपनी