आओ थेरियों प्रदीप श्रीवास्तव भाग 4 मैं बार-बार वह ताकत, वह साधन ढूंढ़ती मनू जिससे इस शोषण का प्रतिकार कर सकूं। रोक सकूं। मगर हर तरफ घुप्प अंधेरा मिलता। कोई एक सेकेंड को भी साथ देने वाला नहीं मिलता। आखिर मैंने तब-तक के लिए खुद को परिस्थितियों के हवाले कर दिया जब-तक कि मेरी और मेरे घर की हालत सुदृढ़ नहीं हो जाती। मैं सरकारी नौकरी की तलाश में लगी रही और उनके जीवन आनंद के खेल का साधन भी बनी रही। मनू यह मेरी मजबूरी की अति थी कि सिर्फ़ वह सियार-सियारिन ही नहीं उसी की तरह का एक