दस्विदानिया - 1

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दस्विदानिया (कहानी पंकज सुबीर) (1) पत्र के आरंभ में कोई भी औपचारिकता नहीं कर रहा हूँ । पत्र जिस मनोस्थिति में लिख रहा हूँ उसमें औपचारिकता की कोई गुंजाइश भी नहीं है । पता नहीं ये पत्र तुमको मिलेगा तो तुम इसको सहज भाव से ले पाओगी भी या नहीं । कुछ नहीं जानता, बस ये जानता हूँ कि तुमको पत्र लिखने के लिये बहुत दिनों से अपने अंदर का अपराध बोध दबाव डाल रहा था । काफी दिनों तक तो टालता रहा, लेकिन जब टालने से बाहर बात हो गई तो अंत में लिखना ही पड़ा । लगभग 20